आजादी के 69 वर्षों के बाद आज भी भारत जैसे देश में समय की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत बनी हुई है महिलाओं विकास और उनके सशक्तिकरण की। कई ऐसी समस्याएं जो देश के विकास में बाधक है उनका समाधान महिला सशक्तिकरण किए बिना असंभव है। अर्थव्यवस्था और राजनीति हो या शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार की बात हो, महिलाओं की भूमिका के बगैर ये काम संभव नहीं है। लेकिन जहां लगभग अस्सी प्रतिशत महिलाएं ग्रामीण निरक्षर हैं, उनसे इन सभी भूमिकाओं को निभाने की उम्मीद तभी की जा सकेगी जब उन्हें अपनी इन क्षमताओं एवं अहमियत का पता हो। संविधान ने महिलाओं को सभी तरह के अधिकार दे दिए, इन अधिकारों को लागू करने के लिए कानून भी बना दिए लेकिन इनका लाभ तो तब होगा जब महिलाओं को इनकी जानकारी होगी और यहां पर महत्वपूर्ण हो जाती है मीडिया की भूमिका। मीडिया की भूमिका के बगैर ये काम मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। जनसंचार के विभिन्न माध्यम महिलाओं में जागरूकता लाकर, उन्हें अपने अधिकारों एवं भूमिकाओं के बारे में सजग बनाकर उनका सशक्तिकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं लेकिन महिलाओं की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी इस मुद्दे पर काफी कुछ किया जाना बाकी है। स्विट्जरलैंड के ठिकाने से काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था के 136 देशों के अध्ययन के मुताबिक स्त्री पुरूष के बीच अंतर की वैश्विक सूची में भारत एक सौ एकवें स्थान पर है। महिलाओं के स्वास्थ्य एवं जन्म के बाद उनके जीवित रहने के मामले में भारत एक सौ पैंतीसवें यानि नीचे से दूसरे स्थान पर है। आर्थिक भागीदारी में एक सौ चौबीसवें और शैक्षणिक उपलब्धियों के लिहाज से एक सौ बीसवें नंबर पर है।