मौर्य काल में पर्यावरण संरक्षण: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
डाॅ0 प्रेम बहादुर, प्रो0 डी0पी0 सकलानीं
आदिकाल से ही मानव अन्य जीव-जन्तुओं की अपेक्षा अपनी प्राकृतिक शक्ति एवं विशिष्टता को समझने में लगा है। वह अपने उत्पत्ति के रहस्यों के साथ-ही-साथ प्राकृतिक रहस्यों को जानने का भी प्रयास करता आ रहा है। विश्व के समस्त धर्मों में ही नहीं अपितु विज्ञान, कला एवं साहित्य आदि विधाओं में भी जीव, जगत् और मानव की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रारम्भ से ही गहन चिन्तन, मनन एवं अध्ययन किया जा रहा है। इतिहास को समस्त विषयों का ‘सार’ कहा जा सकता है क्योंकि इसमें समस्त विधायें समाहित हैं। लगभग विश्व के सभी धर्म जीव की उत्पत्ति का मूल कारण ईश्वर को मानते हैं जो मूलतः कोई अदृश्य पारलौकिक सत्ता न होकर प्रकृति ही है। प्रकृति ही समस्त भौतिक जगत की उत्पत्ति का मूल कारण है। इतिहास का मूल विषय इन्हीं भौतिक कारकों में उत्पन्न हुए मानवीय क्रिया कलापों का अध्ययन है। इस प्रकार इतिहास अतीत के कृत्यों का क्रमबद्ध वैज्ञानिक अध्ययन है साथ-ही-साथ प्रकृति प्रदत्त सर्वाधिक अमूल्य निधि मानव के उत्पत्ति, विकास, क्रिया-कलाप, उत्थान एवं पतन का क्रमबद्ध अध्ययन भी करता है। मौर्य युग प्रथम राजतन्त्रात्मक शासन प्रणाली है जिसमें प्रत्यक्षतः प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण पर विषेश ध्यान दिया गया है जिसका साक्ष्य कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्पष्टतः परिलक्षित होता है।
डाॅ0 प्रेम बहादुर, प्रो0 डी0पी0 सकलानीं. मौर्य काल में पर्यावरण संरक्षण: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 2, Issue 11, 2016, Pages 70-75