वर्तमान में नक्सलवाद घोर हिंसक कार्यवाहियों का पर्याय बन गया है और भारतीय लोकतंत्र के लिए ज्वलन्त समस्या बन कर उभरा है। सन् 1960 के दशक से उभरा नक्सली आन्दोलन आज देश के कई भागों को पूरी तरह अपने गिरफ्त में ले चुका है। नक्सलवाद का नाम चाहे कुछ भी दिया जाए लेकिन परिणाम समान है - हिंसा, हत्या, प्रतिशोध और सत्ता की राजनीति का खेल। माओ के दर्शन में विश्वास रखने और उसके अनुसार कार्यवाही करने वाले नक्सली आन्दोलनकारियों ने आतंकवादी तरीको का आश्रय लेना प्रारंभ कर दिया है जोकि हमारे समक्ष चुनौती बनकर खड़ा है। इसके अतिरिक्त यह स्वीकार करना चाहिए कि नक्सली या माओवादी एक सामाजिक, आर्थिक समस्या है, लेकिन आन्दोलन हिंसा के रास्ते पर चला गया है, इसलिए यह कानून व्यवस्था की स्थिति से जुड़ा है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 55 से ज्यादा जिलो में उनका असर है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा के अनेक जिलों में तो उनकी समानांतर सरकारें चल रही है।
श्रवण कुमार, डाॅ0 दिलीप कुमार. नक्सलवादः भारतीय लोकतंत्र की ज्वलंत समस्या. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 2, Issue 8, 2016, Pages 110-111