International Journal of Humanities and Social Science Research

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International Journal of Humanities and Social Science Research
International Journal of Humanities and Social Science Research
Vol. 4, Issue 6 (2018)

मृदुला गर्ग के कथा प्रसंगों में नारी चेतना के बदलते स्वरूप का अध्ययन


उजाला मिश्रा

भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि में जिस सामाजिक व सांस्कृतिक परम्परा को रिक्थ जनमानस में प्राप्य है, उसमें अविवाहिता नारी एक विचित्र और अनोखी स्थिति की द्योतक है। भारतीय सामाजिक जीवन में विवाह जैसे सामाजिक प्रश्नों को धार्मिक आचारों के साथ बड़ी दृढ़तापूर्वक बांधा गया है। यहां विवाह एक धार्मिक अनुबन्ध ही नहीं है अपितु स्त्री का जीवन क्रमशः पिता, पति और पुत्र के अधीन है। ऐसी सामाजिक विचारधारा में अविवाहिता नारी मानो भारतीय परम्परा के बिल्कुल विरुद्ध है।
वस्तुतः मृदुला गर्ग के कथा प्रसंगों में नारी और पुरुष के सम्बन्ध चित्रण में यह स्पष्ट किया गया है कि नारी सदियों से पीड़ा सहती आ रही है। व्यक्ति की अनेक मानसिक तथा शारीरिक आवश्यकताएँ ऐसी हैं जिनकी पूर्ति समाज में रह कर ही संभव हो सकती है। व्यक्ति का जीवन में जो लक्ष्य होता है, उसकी पूर्ति समाज में रह कर ही संभव है। वस्तुतः समाज से पृथक सर्वथा एकाकी जीवन की कल्पना भी व्यक्ति के लिए असह्य है। व्यक्ति ही समाज को बनाते हैं। अतः परिवार में व्यक्तित्व को बनाना परोक्ष रूप से समाज का ही निर्माण है। किसी समाज में नारी का क्या स्थान है, इससे उस समाज की स्थिति पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है। जिस समाज में नारी जाति का शोषण होता है, उसका अर्थ है, समाज का आधा अंग शोषित और पीड़ित है। यदि नारी के अधिकारों का हनन हो, उसे आगे बढ़ने से रोका जाय तो ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण समाज की उन्नति संभव नहीं। प्राचीन काल से स्त्री की स्थिति समाज का विकास नापने का मापदण्ड रही है।
मृदुला जी के कुल छः उपन्यास हैं। उनमें भले ही विदेशी पुरुष के साथ भारतीय स्त्री प्रेम करती हों। फिर भी वह कभी भारतीयता को धुत्कारती नहीं। ‘वंशज’ उपन्यास सामाजिक है। जब शुक्ला जी के पात्र को देखा जाता है तो, वह भारतीय रस्मों को चाहता है, भारतीय संस्कार पर भरोसा करता है। फिर अंग्रेजों के विचारों को अपनाता है। इसलिए ‘वंशज’ दो पीढ़ियों के संघर्ष में दब चुका है। बाप अंग्रेज न्यायप्रिय है, बेटा भारतीय विचारवादी है। दोनों एक-दूसरे को खूब चाहते हैं। ‘उसके हिस्से की धूप’ उपन्यास की मनीषा पति के रहते हुए भी मधुकर जैसे पर-पुरुष के साथ शादी कर लेती है। जब मधुकर के प्रेम में अधूरापन महसूस होने लगता है, तो तुरंत राकेश से शादी करती है। उसी प्रकार का उपन्यास ‘मैं और मैं’ है। माधवी अच्छी लेखिका है। माधवी और मनीषा के पात्रों में कुछ भी फर्क नहीं है। अगर दोनों उपन्यास को एक के बाद एक पाठक पढ़ता है तो, वह समझेगा कि- एक ही उपन्यास दो भागों में है। भले ही इन दोनों उपन्यास के बीच दो उपन्यास का अन्तराल रहा हो, फिर भी लेखिका का प्रथम उपन्यास की मनःस्थिति मात्र बिल्कुल वैसी की वैसी रही है। दोनों नायिकाओं की ख्वाईशें, पसंद अपनी-अपनी अलग है।
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How to cite this article:
उजाला मिश्रा. मृदुला गर्ग के कथा प्रसंगों में नारी चेतना के बदलते स्वरूप का अध्ययन. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 4, Issue 6, 2018, Pages 73-77
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