स्वाधीनता आन्दोलन और उग्रवादी विचारधारा का विशलेषणात्मक अध्ययन
डाॅ0 श्याम नारायन
प्रस्तुत शोध पत्र स्वाधीनता आन्दोलन और उग्रवादी विचारधारा का विशलेषणात्मक अध्ययन पर आधारित है। उग्रवादियों के चिंतन का एक महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्र की सामूहिक स्वतंत्रता का आग्रह था। वे सामूहिक स्वतंत्रता को वैयाक्तिक स्वतंत्रता से पृथक मानते थे। उग्रवाद 1916 से 1919 तक भारतीय राजनीति में केन्द्रीय स्थान बनाये रहा, उसके बाद गाँधी जी के भारतीय राजनीति में आने से एक समन्वयकारी युग का उद्भव हुआ। उग्रवाद तथा आंतकवाद समाप्त नहीं हुआ वरन् समय-समय पर आवश्यकता पड़ने से राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम को शक्ति प्रदान करते रहे। उग्रवाद का रूप समय तथा परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहा, किन्तु लाल बाल पाल तथा अरविंद घोष ने कभी भी हिंसा तथा क्रांति को महत्व नही दिया।
उदारवाद तथा उग्रवाद दोनों में विरोध होते हुए भी उद्देश्य की दृष्टि से दोनों एक थे। दोनों ही देशप्रेम एवं राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत थे। एक-दूसरे के लक्ष्य परस्पर पूरक थे। एक का क्षेत्र वाणी था तो दूसरे का क्षेत्र कर्म था। कांग्रेस के सम्पूर्ण इतिहास में बने दलों के नाम तथा तरीकों के आधार दो विचारधाराओं के दर्शन होते हैं। एक विचारधारा को मानने वाले ने भारत के लिए स्वशासन तथा स्वभाग्य निर्धारण के ध्येय को अपनाया, जिसका दर्शन ब्रिटिश उदारवादियों जैसा रहा है, जिसे दक्षिणपंथी विचारधारा कहा जा सकता है। दूसरी विचारधारा का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति का रहा है, इसका झुकाव सीधी कार्यवाही की ओर रहा है।
डाॅ0 श्याम नारायन. स्वाधीनता आन्दोलन और उग्रवादी विचारधारा का विशलेषणात्मक अध्ययन. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 1, 2019, Pages 71-73