भारतीय संविधान और महिलाओं के अधिकार : विवेचनात्मक अध्धयन
Dr. Hemant Kumar
यत्र नारीयस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता भारतीय मान्यता के अनुसार जहाँ स्त्रीयों का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते है (मनुस्मृति) सृष्टि - सृजन और मानवीय सभ्यता के विकास में स्त्री व पुरुष दोनों की समान सृजनात्मक भूमिका रही है | ये दोनों एक दूसरे के पूरक एवं सहयोगी है | नारी अपने विविध रूपों में पुरुष का संवर्धन, प्रोत्साहन और शक्ति प्रदान करती है | माता के रूप में नारी पुरुष के चरित्र की संरोपण भूमि है| पत्नी के रूप में नारी पुरष उत्कर्ष का प्रसार स्तम्भ है | भिन्न- भिन्न देश, काल एवम परिस्थियों में महिलाओं की स्थिति, योगदान एवम स्वरूप को लेकर मतांतर रहे है | साहित्य एवं ज्ञान लोक ने नारी को गृह कार्य एवं काम प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है, तो काव्यकारों ने सोंदर्य-बोधक स्वरूप में | नारी निर्माण की ईसप्रक्रिया से समाज में महिलाओं की स्थिति असमानता,शोषण व उत्पीडन के अनुभवों से जुडती चली गयी | उसे समाज में द्वितीय दर्जा दे दिया गया | वर्तमान समाज अर्थवाद का दास बनता जा रहा है | जहाँ सम्पत्ति की अनियमिता से अधिक महत्व दिया जाता है | पूंजीवाद से सत्तावाद तथा सत्तावाद, सम्पत्ति, विलासितावाद, भोगवाद की ओर बढ़ रहा है | आदर्शात्मक मूल्यों का इस वर्तमान समाज में कोई महत्व नहीं है | महिलाओं के अधिकारों के विभिन्न तरीके है जिसमे महिलाओं के साथ ही अबोध बालिकाएं भी सदियों से पुरुषों द्वारा अधिकारों के हनन की शिकार रहीं है तथा वर्तमान में भी इस स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है जबकी अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय व स्थानीय स्तरों पर महिलाओं की स्थिति को सुधार के लिए विशेष प्रावधान किए गए है | विश्व जनगणना 2011 के अनुसार विश्व की कुल जनसँख्या की लगभग आधी जनसंख्या महिलाओं की है | अर्थात प्रारम्भ से ही विश्व में महिलाऐं समाज का एक अभिन्न अंग हैं परन्तु फिर भी महिलाओं की स्थिति भारत में ही नहीं अपितु विश्व के सभी देशों में प्रारम्भिक काल से ही दयनीय रही है |महिला विकास यात्रा संक्रमण से गुजर रही है जिसमें सकारात्मक व नकारात्मक तत्वों का समन्वय है |इस शोध – पत्र के अध्धयन का उद्देश्य महिलाओं में सशक्तिकरण एवं जागरूकता लाना है साथ ही समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान पैदा करना है | स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय नारी की स्थिति में काफी सुधारात्मक परिवर्तन हुए है | आजादी के 71वर्षों के पश्चात हम यदि क़ानूनी द्रष्टिकोण से नारी के प्रति अपराधों को रोकने के लिए बनाये गए अधिनियमों की विवेचना करते है तो स्पष्ट परिलक्षित होता है की हमारे देश में नारी की गरिमामयी स्थिति को बनाए रखने के लिए काफी सारे कानून बनाये गए है | किन्तु पर्याप्त क़ानूनी शिक्षा के आभाव में कानून की जानकारी उनको नही मिल पाती | यहाँ तक कि अधिकांश महिलाओं को यह ज्ञात नहीं होता कि उन्हे कौन – कौन से अधिकार प्राप्त है | प्रस्तुत शोध – पत्र मे महिलाओं के उत्थान एवं उनके प्रति अपराधों को रोकने हेतु कौन – कौन से अधिकार है इसके बारे मे वर्णन किया गया है |
Dr. Hemant Kumar. भारतीय संविधान और महिलाओं के अधिकार : विवेचनात्मक अध्धयन. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 1, 2019, Pages 68-70