भारत में मुस्लिम महिलाओं की एतिहासिक पृष्ठ भूमि: उनके अधिकारों के विशेष सन्दर्भ में
श्शाईस्ता परवीन, हिमांशु बौड़ाइ
प्रस्तुत शोध पत्र में शोधार्थिनी द्वारा भारत में इस्लाम के एतिहासिक परिपेक्षय में मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और वास्तविक स्थिति को जानने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समाज में महिलाओं की जटिल विविधता तथा 12 वीं शताब्दी (भारत में मुस्लिमों का आगमन) से मुस्लिम महिलाओं के अधिकार, मुस्लिम महिलाओं का योगदान, स्वतंत्रता के पश्चात भारत के सबसे बडे धार्मिक अल्पसंख्यक समाज में उनकी चुनौतियाँ, व महिलाओं के आन्दोलन की सफलताओं तथा विफलताओं को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। वास्तव में हम समझते है कि महिलाओं के उदारवादी आन्दोलन की शुरूआत 19 वीं शताब्दी से हुई जबकि इस्लाम में इसकी शुरूआत पैगम्बर मुहम्मद द्वारा हो चुकी थी। पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षा तथा कुरान ही वे स्रोत है जिनके द्वारा मुस्लिम महिलाऐं अपने अधिकारों को जानने का प्रयास करती है, जिसको इस्लामिक सिद्धान्त कहते है। इस्लामिक सिद्धान्त ने पुरूषों और महिलाओं के लिए सामाजिक समानता को स्वीकार किया परन्तु व्यवहार में महिलाओं को सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में समान भागीदारी करने की अनुमति नही। उदाहरण के लिए, इस्लामिक विवाह एक अनुबन्ध है फिर भी यह पुरूषों और महिलाओं को समान अधिकार नहीं देता, जहाँ यह केवल पुरूषों को ही बहुविवाह व तलाक देने की अनुमती देता है।
श्शाईस्ता परवीन, हिमांशु बौड़ाइ. भारत में मुस्लिम महिलाओं की एतिहासिक पृष्ठ भूमि: उनके अधिकारों के विशेष सन्दर्भ में. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 5, 2019, Pages 53-56