International Journal of Humanities and Social Science Research

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International Journal of Humanities and Social Science Research
International Journal of Humanities and Social Science Research
Vol. 5, Issue 5 (2019)

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की राजनीति के प्रति जागरूकता


तरुणेश

भारत मुख्यतः गाँवों का देश है। प्राचीन काल से ही भारतीय ग्रामीण समुदाय की सामाजिक संरचना के तीन महत्वपूर्ण आधार जाति-प्रथा, संयुक्त परिवार और ग्रामीण पंचायत रहे हैं । स्व-शासन की इकाई के रूप में ग्रामीण पंचायतों का विशेष महत्व रहा है। बलवंतराय मेहता समिति (1958) की सिफारिशों के आधार पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है। यही माना जाता है कि देश का समग्र विकास महिलाओं की भागीदारी के बिना नहीं हो सकता है। लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था में पंचायती राज ही वह माध्यम है जो शासन को सामान्य जन के दरवाजे तक लाता है। लोकतन्त्र के उन्नयन में पंचायती राज की विशेष भूमिका रही है। महिलाओं के विकास के लिए तैयार किया दस्तावेज (1985) में स्वीकार किया गया है कि महिलाओं के द्वारा अनौपचारिक राजनैतिक गतिविधियों में तीव्र वृद्धि के बावजूद राजनैतिक ढाँचे में उनकी भूमिका वास्तव में अपरिवर्तित रही है। देश में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की एक-तिहाई भागीदारी होने और पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से (1992) में 73वाँ संवैधानिक अधिनियम पारित हुआ। राजनीति में महिलाओं की विस्तृत भागीदारी जाति, धर्म, जमींदारी तथा पारिवारिक स्थिति जैसे पारस्परिक कारणों की वजह से बहुत सीमित है। इस संविधान के अनुसार एक ग्राम सभा का गठन होना अनिवार्य है जिसमें महिलाओं की भागीदारी के साथ-साथ ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों की जिला परिषदों के अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या कम से कम एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं अर्थात् एक-तिहाई संस्थानों की अध्यक्ष भी महिलाएं ही होंगी। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की राजनीति के प्रति जागरूकता में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप वे राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
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तरुणेश. पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की राजनीति के प्रति जागरूकता. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 5, 2019, Pages 82-84
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