असंगठित समाज में मनुष्य के सुख की कल्पना नहीं की जा सकती। मनुष्य के अन्दर विश्व बन्धुत्व एवं विश्व कल्याण की भावना भी होनी चाहिए।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय
अपने सुख की कल्पना तो सारा संसार करता है लेकिन संसार के सुख की कल्पना तो विरले लोग ही करते है, इन विरले लोगों में अलग सबसे ऊपर आता है पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का नाम जिनका सम्पूर्ण जीवन मानवता एवं विश्व बन्धुत्व मंे निकल गया। पंडित जी मंे सभी को साथ लेकर और सभी के साथ होकर चलने की अद्भुत क्षमता थी। उनका चिंतन केवल वर्तमान के संदर्भों मंे नहीं बल्कि भविष्य के परिणामों के साथ सम्बद्ध था। पंडित जी का चिंतन एक ऋषि के समान था। राष्ट्रीयता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। राष्ट्रीयता के संदर्भ में उनका कहना था कि स्वदेशी पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। स्वयं पंडित जी स्वदेशी का जीता-जागता उदाहरण थे। वे स्वयं सम्पूर्ण जीवन स्वदेशी को आत्मसात किए रहे। और स्वदेशी के प्रति उनकी आस्था एवं विश्वास प्रगाढ़ था। उन्होंने माना कि स्वदेशी भारतीयांे के लिए एक वरदान के समान है। जिसका उपयोग एवं उपभोग करें।
डाॅ. आशीष कुमार यादव. पंडित दीन दयाल उपाध्याय व्यक्त्वि एवं कृतित्व. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 5, 2019, Pages 149-152