बघेली लोक साहित्य में लोक मान्यताओं की अभिव्यक्ति का अध्ययन
डाॅ. अंशुला मिश्रा
लोक जीवन भारतीय मूल संस्कृति का तात्विक अंश है। भारतीय संस्कृति में समयानुकूल परिवर्तन भी हुए परन्तु लोक संस्कृति आज भी अपने मूल रूप में सुरक्षित है। संस्कृत और लोक संस्कृति एक ही धारा के दो पुष्प है एक को माली ने संवारा और सजाया है तो दूसरी प्रकृति की गोद में स्वयंमेव हंसा और खिला है। राय कृष्णदास1 कहते हैं -“लोक संस्कृति प्रकृति की गोद में पलती और पनपती है। लोक संस्कृति के उपासक बाहर की पुस्तकें न पढकर अंदर की पुस्तकें पढ़ते है। उनके हृदय सरोवर में श्रद्धा के फूल सदा फूले रहते हैं। वस्तुतः लोक संस्कृति का मूल सहज और विश्वास है दूसरी ओर प्राचीन अर्थ व्यवस्था एवं संस्कृति का रूप। लोक जीवन के सहज चित्र बघेली लोक जीवन में प्राप्त होते हैं। अनेक शैली, बोली, भाषा में गाये गीत एक ही लोक संस्कृति का शाश्वत रूप प्रस्तुत करते हैं। एक तार में गूथे अनेक रंगीन रत्नों के समान प्रदेश - प्रदेश के लोकगीत स्वयं में एक ही संस्कृति को समाहित किये है।
डाॅ. अंशुला मिश्रा. बघेली लोक साहित्य में लोक मान्यताओं की अभिव्यक्ति का अध्ययन. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 5, 2019, Pages 141-143