कश्मीर समस्या के बदलते आयाम अनुच्छेद 370 के परिप्रेक्ष्य मेंः एक अध्ययन
डाॅ. राकेश रंजन
प्रस्तुत शोध पत्र में मैं अतीत में कश्मीर की समस्या को वत्र्तमान समय में बदलते आयाम को प्रतिष्ठित करने का भरसक प्रयास किया हूँ। जम्मू-कश्मीर के मसले पर अपनी नीतियों को लेकर आलोचनाओं का शिकार होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अवगत थे कि एक न एक दिन अनुच्छेद 370 को हटना ही है। यह अनुच्छेद इसलिए लाया गया था कि तब वहाँ युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पी. ओ. के.) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी। ऐसे में वहाँ भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने शायद उचित नहीं समझा था। उनकी इस भविष्यवाणी की झलक जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेता पं. प्रेमनाथ बजाज को लिखे एक पत्र में दिखती है। 21 अगस्त, 1962 को अनुच्छेद 370 के संबंध में पं. प्रेमनाथ बजाज के पत्र का उत्तर देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था-‘वास्तविकता यह है कि संविधान में इस अनुच्छेद के रहते हुए भी जो कि जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती है, बहुत कुछ किया जा चुका है और जो कुछ थोड़ी बहुत बाधा है, वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी। सवाल भावुकता का अधिक है, बजाय कुछ होने के, कभी-कभी भावना महत्वपूर्ण होती है, लेकिन हमें दोनों पक्षों को तौलना चाहिए और मैं सोचता हूँ कि वत्र्तमान में हमें इस संबंध में कोई परिवत्र्तन नहीं करना चाहिए। आज 70 साल बाद जम्मू-कश्मीर में बड़ा बदलाव न रहा अलग झंडा, न रही दोहरी नागरिकता।1
डाॅ. राकेश रंजन. कश्मीर समस्या के बदलते आयाम अनुच्छेद 370 के परिप्रेक्ष्य मेंः एक अध्ययन. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 5, Issue 5, 2019, Pages 247-250