विदर्भ की एकल महिला किसान को सशक्त बनाने में स्वयंसेवी संगठन की भूमिका
अभिषेक कुमार राय
भारत के कृषि क्षेत्र में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। कृषि में महिला किसान कृषि के सभी चरणों में एक बहुआयामी भूमिका निभाती है। चाहे वह बुवाई से रोपण, सिंचाई, उर्वरक, फसल संरक्षण, कटाई, निराई, भंडारण और पशु प्रबंधन हो, महिला किसान सुबह के सूर्योदय से शाम के सूर्यास्त तक कृषि कार्य में लगी रहती है। जिसकी वजह से वह कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से भी घिरी रहती है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कृषि कार्य एक पुरुष प्रधान कार्य माना जाता है। इसलिए कृषि में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम सम्मान प्राप्त होता है। कम पढ़ाई और जागरूकता की कमी से महिलाएं अपने अधिकार और उचित सम्मान/भाव/मजदूरी को प्राप्त नही कर पाती है। यहाँ कृषि में एकल महिला किसान की स्थिति और चिंता जनक होती है। एकल महिला किसान से तात्पर्य वह महिला जिनके पति ने आत्महत्या कर ली हो, तलाकशुदा हो, पति की मृत्यु हो गई हो, परितक्तता हो, प्रौढ़कुवारी हो अथवा पति प्रवासी हो। ऐसी महिलाओं को कई संकटों और चुनौतियों का सामना समाज, कृषि, आजीविका, परिवार संचालन में करना पड़ता है। एकल महिला किसान को परिवार प्रबंधन, कृषि प्रबंधन, वित्तीय प्रबंधन के लिए मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में अंतिम पायदान की परिधि में रहने वाली महिलाओं को सशक्त किए बिना महिला सशक्तिकरण की परिकल्पना पूर्ण नहीं हो सकती है। एकल महिला किसान को सशक्त बनाने और उनको बेहतर जीवन उपलब्ध करवाने में विदर्भ के कई स्वयंसेवी संगठन अपनी भूमिका निभा रहे है। इस शोध पत्र का प्रमुख उद्देश्य विदर्भ में एकल महिला किसान की समस्या एवं चुनौती को देखना, विदर्भ में एकल महिला किसान के सशक्तिकरण एवं विकास में स्वयंसेवी संगठन की रणनीतिक भूमिका, उनके कार्यक्रम, उनकी अभ्यासीय विधि, अर्जित अनुभव एवं समस्या का अध्ययन करना है। शोध पत्र गुणात्मक प्रकृति पर आधारित है, जिसमें गुणात्मक प्रविधि, उपकरण का उपयोग करते हुए उसके अंतर्वस्तु विश्लेषण से शोध पत्र की व्यापक व्याख्या कर उसका विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
अभिषेक कुमार राय. विदर्भ की एकल महिला किसान को सशक्त बनाने में स्वयंसेवी संगठन की भूमिका. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 6, Issue 3, 2020, Pages 116-122