International Journal of Humanities and Social Science Research

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International Journal of Humanities and Social Science Research
International Journal of Humanities and Social Science Research
Vol. 7, Issue 6 (2021)

मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के संबंध में निगमित दृष्टिकोण


दीपक निकुब

प्रत्येक नागरिक भारतीय संविधान द्वारा निर्देशित राष्ट्र के प्रति 11 मौलिक कर्त्तव्य देश की एकता और अखंण्डता को बनाए रखने के लिए नैतिक दायित्वों के रूप में धारण करता हैं। मौलिक अधिकार, मौलिक कर्त्तव्यों द्वारा समर्थित हैं। कर्त्तव्य अधिकारों से अविभाज्य हैं, अतः दोनों कड़ाई से सहसंबद्ध हैं। न्यूटन का नियम, “प्रत्येक क्रिया के लिए एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती हैं”, सामाजिक रूप से प्रासंगिक हैं। यह एक कठिन तथ्य है कि मौलिक कर्त्तव्यों पर मौलिक अधिकारों की तुलना में कम चर्चा एवं विचार-विमर्श किया जाता हैं। हमें जिम्मेदारियों का निर्वहन करने की शक्ति और क्षमता को समझने एवं महसूस करने की आवश्यकता हैं। जिम्मेदारियों का निर्वहन करने से राष्ट्रीय प्रगति में योगदान करने का अद्भुद्ध अवसर मिलता हैं। मौलिक कर्त्तव्य एवं मौलिक अधिकार नागरिकों के साथ ही व्यापार एवं संगठनों के लिए भी समान रूप से लागू होते हैं, क्योंकि व्यक्तियों का समूह ही कम्पनी एवं संगठन का निर्माण करता हैं। व्यापार में मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति सामूहिक जिम्मेदारियां होती हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि सामूहिक प्रयासों के बिना व्यवसाय औपचारिक कर्त्तव्यों का पालन करने में सक्षम नहीं होंगे। सरकार को एक सक्षम और उत्साहजनक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहिए जहॉं हर कोई और हर संगठन अपने कर्त्तव्यों का निर्वांह करने में सक्षम हो। जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में विफलता प्रगति, शांति और सद्धभाव के मार्ग पर चोट करेगी। हमारे निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) को हमारे मौलिक कर्त्तव्यों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए एवं सभी सामाजिक विकास कार्यक्रमों और परियोजनाओं को उनके साथ जोड़ा जाना चाहिए। शक्तिशाली पदों, बड़े संगठनों एवं व्यवसायों में लोगों का यह कर्त्तव्य है कि वे अपने आस-पास के वंचितों के अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास करें एवं सामूहिक व्यवहार को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी लें।
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दीपक निकुब. मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के संबंध में निगमित दृष्टिकोण. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 7, Issue 6, 2021, Pages 38-42
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