सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण
शिखा गोयल
महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना “महिला सशक्तिकरण” है। कोमल है, कमजोर नहीं तू स शक्ति का नाम ही नारी है।। जग को जीवन देने वाली स मौत भी तुझसे हारी है।।‘ महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो। भारत जनसंख्या के घनत्व में दूसरे स्थान पर हैं, ४९ प्रतिशत महिलाएं पुरुषों के बगल में एक प्रमुख मानव संसाधन बनाती है। महिला सशक्तीकरण की भूमिका हमेशा शिक्षा से संबंधित हैस वास्तव में महिलायों के लिए उच्च शिक्षा महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैप् यहाँ पं.जवाहर लाल नेहरु द्वारा कहा गया मशहूर वाक्य “लोगों को जगाने के लिये”, महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी दक्यानुसी सोच, राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण-हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय। लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये। अथवा नेहरु के शव्दों के अनुसार यदि कोई महिला शिक्षित है,तो अपने परिवार को शिक्षित बनाने में सक्षम हो सकती है,जिससे वह सशक्त बन सकती हैप् भारतीय महिलाओं ने भारत के निर्माण में कई प्रावधानों के बावजूद अशिक्षा, सहायता की कमी, लींग पूर्वाग्रह आदि जैसी कई समस्याओं से गुजरी है, जैसे कि इसके प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों और जैसे महिलाओं के लिए समानता के बारे में उलेख्य किया गया हैप् उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की अवधारणा के सफल प्रक्षेपण के बाद भी सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी में कमी आई हैप् अतः वर्तमान पेपर उच्च शिक्षा के माध्यम से भारतीय महिलाओं और उनके सशक्तीकरण पर केंद्रित है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उच्च शिक्षा महतवपूर्ण भूमिका निभाएगी। महात्मा गाँधी’’ हमारा पहला प्रयास अधिक से अधिक महिलाओं को उनके वर्तमान स्थिति के प्रति जागरूक करना होना चाहिए।’’ यूण्एनण्डीण्पीए नारी सशक्तिकरण को सिर्फ इसलिए महत्व नहीं देता कि यह मानव अधिकार है बल्कि इसके माध्यम से हमारे सदियों से चले आ रहे विकास के लक्ष्यों को पूरा करने का और सतत् विकास के मार्ग में लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को भी शामिल करना है। लैंगिक समानता, गरीबी में कमी, लोकतांत्रिक शासन, संकट की रोकथाम, पर्यावरण और सतत् विकास में महिलाओं की भागीदारी, सशक्तिकरण को एकीकृत करने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय प्रयासों का समन्वय करता है।
शिखा गोयल. सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 8, Issue 1, 2022, Pages 59-68