ग्रामीण एवं शहरी विद्यार्थियों की लधु परिवार के प्रति अभिवृत्ति का अध्ययन
मुकेश कुमार गुप्ता
कई युग बदलते गयें। वर्तमान को कलयुग की संज्ञा दी गयी । जिसमें मनुष्यों की संख्या में वृद्वि ने सुरसा जैसा मुह बढा लिया। चाहते हुए भी हम छोटा परिवार एंव सुखी परिवार नहीं रख पा रहे हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में स्थान स्थान पर दस पुत्रों के लिए प्रार्थनाएं की गई हैं साथ ही बडे परिवारों की दुर्दश का भी वर्णन प्रचुरता से मिलता हैं। ऋग्वेद मानव जाति में सबसे प्राचीन वेद हैं। इसमें कहा गया है कि ”बहुप्रजा निऋतिवेंश“ अर्थात अधिक प्रजा वाला राज्य धोर संकट पाता है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में यह व्यष्टि एंव समष्टि दोनों स्तरों पर प्रयुक्त होता हुआ प्रतीत होता है। इस वेद वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि वैदिक ग्रन्थों में की गई दस पु़त्रों के लिए प्रार्थनाएॅ उस समय के आर्थिक,सामाजिक एंव राजनैतिक, दृष्टिकोण से भले ही उपयुक्ता रही हों, परन्तु समय के राज्य के साथ साथ छोटे परिवार के परिवार के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति का निर्माण होने लगा। मुन महाराज का भी कथन है कि “अकेले पहले पुत्र से ही व्यक्ति पुत्रवान हो जाते हैं पितृ- ऋण से युक्त हो जाते है एंव परमानन्द की प्राप्ति करता है। पहला पुत्र ही धर्म से उत्पन्न पुत्र है शेष तो लिप्सा से उत्पन्न है”। भारत में वेद, महाभारत, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मनुस्र्मति आदि ऐसे ग्रन्थ हैं जिसमें लधु परिवार सम्बन्धों ज्ञान का वर्णन मिलता है। प्लेटों के रिपब्लिक में मत व्यक्त किया गया है कि यदि जनसंख्या सीमित नहीं व परिवार लधु नहीं है तो निर्धानता बढेगी। अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसका सबसें ज्वलंत उदाहरण भारत की जनसंख्या नीति है, जहाॅ पर ’हम दो हमारे एक’ के सिद्वान्त को अपनाकर अति लधु परिवार की तरफ जाने का सकेत दिया है। उसी तरह भारत में जनसंख्या पर नियंत्रण व छोटे परिवारों को बढावा देने हेतु प्रोत्साहन के साथ साथ कठोर नीतियां भी अपनाई जा रही है साथ ही सरकार द्वारा लधु परिवार रखने वाले व्यक्तियों को विभिन्न प्रोत्साहन राशियों भी दी जाती है। हम कह सकते है कि हमें बडे परिवार की समस्याओं से निजात पाने के लिए प्रोत्साीन व कठोरता के साथ-साथ इन प्रकरणें को हमारी शिक्षा में भी पाठ्यक्रम का एक अहम् हिस्सा बनाना चाहिए।
मुकेश कुमार गुप्ता. ग्रामीण एवं शहरी विद्यार्थियों की लधु परिवार के प्रति अभिवृत्ति का अध्ययन. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 8, Issue 2, 2022, Pages 16-18