विश्व भर में जलवायु परिवर्तन का विषय सर्वविदित है। औद्योगीकरण की दौड में पर्यावरण की कीमत पर संसाधनो का दोहन और आर्थिक विकास जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण समस्याओं के लिए उतरदायी है । पिछले एक दशक में मानव जनित ग्रीन हाऊस गैसो के उत्सर्जन के परिणाम स्वरूप वैश्विक स्तर पर जो अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन हुआ है उसका परिस्थितिकी, जीव समुदाय तथा विश्व की सामाजिक आर्थिक प्रणालियों पर गम्भाीर प्रभाव पडा है। क्षेत्रीय स्तर पर मौसम में जो उग्र बदलाव आ रहा है उसको देखते हुए वैशिवक तपन समस्त मानवता के लिए तबाही मचा सकती है। 1995 से 2006 की अवधि के 12 में से 11 वर्षो को 1850 के बाद से सबसे गर्म 11 वर्षो को शीर्ष पर रखा गया है। 2003 में गर्म हवाओं के कारण भारत जैसे विकासशील देश में 1500 लोग मारे गए। अर्कटिक के शाश्वत धुव्रीय हिमाशिखरों का तेजी से लुप्त होना और हिमालयीन हिमनदो के सुकडते जाने की घटनाऐ वैश्विक तपन के असाधारण लक्षणों को और भी विश्वसनीय बनाती जा रही है भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के एक अध्ययन के अनुसार उतराखण्ड के विशालतम हिमालयीन हिमनदों में से एक गंगोत्री हिमनद वर्तमान 19 मीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से सिकुडता जा रहा है। इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि वर्तमान में भी जलवायु परिवर्तन वैैश्विक व क्षेत्रीय समाज के समक्ष मौजूद सबसे बडी चुनौती है आंकडे दर्शाते है कि 19 वीं सदी के अन्त से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 °C फारनहाइट बढ गया है इसके अतिरिक्त पिछले सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। अंाकडे स्पष्ट करते है कि यह समय जलवायु परिवर्तन कि दिशा में गम्भीरता से विचार करने का है। प्रस्तुत शोध पत्र भी जलवायु परिवर्तन व राजनीति से सम्बंधित है इस शोध पत्र के माध्यम से जलवायु परिवर्तन कि चुनौतियाँ, वैश्विक तथा क्षेत्रीय स्तर राष्ट्र व राज्य से सम्बंधित सभी विषयों पर विचार प्रस्तुत किया जाएगा।