International Journal of Humanities and Social Science Research

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International Journal of Humanities and Social Science Research
International Journal of Humanities and Social Science Research
Vol. 8, Issue 4 (2022)

आदर्शवादी परम्पराः इमैनुएल कांट


Nisha Kanwar

जर्मन आदर्शवादी दर्शन के पिता इमैनुअल कांट का जन्म 1724 ईस्वी में जर्मनी के कोनिग्सबर्ग प्रदेश में हुआ। कांट 18 वीं व 19 वीं शताब्दी के एक अत्यंत ही प्रमुख दार्शनिक स्वीकारे जाते हैंए जिनकी कृतियों में हम जहाँ एक ओर ज्ञानमीमांसा के क्षेत्र में इंद्रियानुभववाद तथा बुद्धिवाद के एकांकीपन को समाप्त समीक्षा बाद नामक सिद्धांत की स्थापना की चेष्टा देखते हैं। तो वहीं दूसरी ओर भी नैतिकता के क्षेत्र में कठोरता बाद या बुद्धिवाद ये नैतिक शुद्धतावाद के रूप में एक महत्वपूर्ण नैतिक दार्शनिक रह चूके हैं। इन के सिद्धांत में हम मानव व्यक्तित्व के उस अंश को अति निम्न स्थान पाते हैं जिसे हम भावना कहते हैं। मनुष्य विवेकशील प्राणी होने के नाते श्रेष्ठतम जीव माना जाता है।तथा उसके नैतिकता के लिए बौद्धिकता हीसर्वोपरि है। संभव है। इसी कारण से उनके सिद्धांत को बुद्धिवाद कहा जाता है। वे नैतिकता के लिए नैतिक नियमों को कठोरता से पालन की बात करते हैं। इसके लिए कोई अपवाद नहीं स्वीकार आ जाता है। आता है। इसे कठोरता वाद कहा जाता है। इसे कुछ समीक्षक नैतिक शुद्धतावाद भी कहते हैं क्योंकि इसमें फल या परिणाम के लिए कोई विशेष स्थान नहीं है।कांट अपने नैतिक दर्शन का प्रारंभ अत्यंत ही नाटकीय ढंग से इस घोषणा के साथ करते हैं कि श्इस संसार या संसार से परे हम किसी भी चीज की कल्पना नहीं कर सकते हैंए जिसे हम निरूपाधिक शुभ कह सकते हैए इसका मात्र एक अपवाद शुभ संकल्पना माना जाता हैश्। कांट के इस कथन का यह अर्थ लगाया जाता है कि शुभ संकल्प भी एकमात्र वैसा संकल्प है जो हर परिस्थिति में सत्य रूप में शुभ है। यह किसी भी परिप्रेक्ष्य के द्वारा प्रभावित नहीं होता है। यह निरपेक्ष है। इसमें सापेक्षता के लिए कोई स्थान नहीं है।इनके अनुसार नैतिकता एक आंतरिक वस्तु है जिसे राज्य न लागू करता है और न कभी लागू की जानी चाहिए।उनका यह मानना हैएराज्य का सच्चा कर्तव्य नागरिक के जीवन को विकसित कर उसे परिपूर्ण बनाना है।
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How to cite this article:
Nisha Kanwar. आदर्शवादी परम्पराः इमैनुएल कांट. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 8, Issue 4, 2022, Pages 100-102
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