प्रस्तुत शोध में वैदिक काल में नारी (महिलाओ) की सामाजिक स्थति एवं उनकी समाज में भूमिका का अध्ययन किया गया हैं , स्पष्टतया समझा जा सकता हैं कि किसी भी देश का सर्वागीण विकास चाहे उसका मतलब सामाजिक विकास से हो या आर्थिक विकास से निर्भर करता हैं कि उस देश में नारियों की स्थिति पर उनके समाज में योगदान पर क्योंकि एक बच्चे का सर्वप्रथम शिक्षक उसकी माता ही होती हैं । आज के समाज में जहां एक ओर महिलाओ को अपने अधिकार की प्राप्ति हेतु संघर्षरत होना पड़ रहा हैं, आज के समय से हजारों वर्ष पूर्व के समाज मे नारी को पुरुषो के समान अधिकार प्राप्त थे, वैदिक काल के समय अर्द्धनारीश्वर रूप महिला और पुरुषों के समान अधिकारों और स्थिति को इंगित करता हैं एवं नारी आज के समाज की अपेक्षा सम्रद्ध समाज की ओर इशारा करता हैं अत यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि यदि नारी को समाज में प्रत्येक स्तर पर समान स्थान मिले तो निश्चय ही हम एक सुसभ्य समाज का निर्माण करने में सक्षम होंगे, उक्त शोध के द्वारा हम वैदिक काल में नारी एवं उसकी सामाजिक स्थिति का अध्ययन करेंगें साथ ही सनातन वैदिक काल के तमान उद्धरण के द्वारा इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारतीय समाज में नारियों को प्राचीन काल से ही अत्यंत सम्मानजनक स्थान प्राप्त हुआ हैं।
डॉ. सत्येंद्र सिंह, शिवम् तिवारी. वैदिक काल में नारी एवं उसकी सामाजिक स्थिति. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 9, Issue 1, 2023, Pages 19-20