International Journal of Humanities and Social Science Research

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International Journal of Humanities and Social Science Research
International Journal of Humanities and Social Science Research
Vol. 8, Issue 5 (2022)

भारत में सामंतवाद का ऐतिहासिक विश्लेषण


अमनदीप

सामंतवाद शब्द यूरोपीय समाज में मौजूद एक धारणा का नाम है, जिसमें भू-स्वामी के भूमि संबंधी अधिकारों को दासों या किसानों के अधिशेष पर पलने वाले परजीवी के रूप में माना गया है। हालांकि यह अवधारणा इतनी पुरानी नहीं है परंतु 17वीं सदी के बाद इसका अस्तित्व भी नगण्य है। यह एक पिछड़ी और धीमी गति से बदलने वाली व्यवस्था के रूप में दिखाया गया है। सामंतवाद की तुलना एक ऐसी व्यवस्था से की गई है जहाँ सता सामंती भू-स्वामियों के हाथों मंे हो और अत्यधिक केन्द्रीकृत हो। यहाँ तक की एक नाममात्र के शासक को भी सार्वजनिक रूप से संप्रभु के रूप मंे स्वीकार किया जाता है। मार्क्सवाद ने विशेषरूप से उत्पादन के प्रश्न की ओर ध्यान आकर्षित किया, यथा भूमि और श्रमिक के बीच संबंध। भू-स्वामी दासों से यह भूस्वामी-कृषक संबंधों की ओर चला गया।
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अमनदीप. भारत में सामंतवाद का ऐतिहासिक विश्लेषण. International Journal of Humanities and Social Science Research, Volume 8, Issue 5, 2022, Pages 62-64
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